भीष्म नहीं जटायु चाहिए …
कुरुवंश का जो कुलभूषण था,
जिनका उच्च स्वाभिमान था।
धीर, वीर, योद्धा गंभीर था,
इच्छामृत्यु का जिसे वरदान था।।
उसी की भरी सभा में आज,
द्रौपदी क्यूं अपमानित हुई,
ये कैसी विवशता थी भीष्म की,
जो नारी शक्ति न सम्मानित हुई।
कुरुक्षेत्र के रणभूमि में स्वयं,
कृष्णचन्द्र विद्यमान थे।
फिर भी भीष्म का भाग्य देखो,
वो विवश और निष्प्राण थे।।
याद करो उस जटायु को जिसने,
सीता रक्षार्थ रावण से लड़ा।
कट कर गिरे दोनों पखेरू,
फिर भी उसने रण न छोड़ा।
सीता का सम्मान बचाने,
मौत से लोहा लिया था।
इसीलिए श्रीराम प्रभु ने,
उसे पिता का दर्जा दिया था।
कब तक जिंदा रहेगा उसका,
जिसे न कोई पूर्वानुमान था।
मौत से पहले, उनके आगे,
स्वयं रामचंद्र भगवान था।।
इच्छामृत्यु का वरदानी देखो,
बाणों की शैय्या में सोया था।
एक नारी का मान न कर पाया,
इस हेतु जीवन भर रोया था।
मैं तो कहता हू्ं इस दुनियां में,
इच्छामृत्यु नहीं अल्पायु चाहिए।
नारी शक्ति के सम्मान हेतु,
भीष्म नहीं जटायु चाहिए।।
©श्रवण कुमार साहू, राजिम, गरियाबंद (छग)