लेखक की कलम से
” सोच रहा हूँ “
सोच रहा हूँ यह मैं आज बैठे-बैठे,
तेरे बिना क्या इक पल भी मैं गुज़ार पाऊँगा?
क्या बिन तेरे मैं जीवन अपना संवार पाऊँगा?
सोच रहा हूँ यह मैं आज बैठे-बैठे_ _ _
जब मिला था तुमसे पहला दिन भी याद है,
दावा नहीं है, कोई न तुमसे पहले न बाद है,
तुमको भी पता है कि तुम पे कितना फिदा हूँ, पास हूँ या दूर न मैं तुमसे जुदा हूँ,
सोच रहा हूँ यह मैं आज बैठे-बैठे _ _ _
फिर आ गया समय वह रूह एक हो गयी,
जो इक कमी थी लगती वह पूरी हो गयी,
वह वर्ष भी था पल सा जो दशक हो गया,
होठों पे हंसी देते क्यों अश्क हो गया,
सोच रहा हूँ यह मैं आज बैठे-बैठे _ _ _
हाथों से समय छूटे इक आस बन रहा है,
सातों जन्म हूँ तेरा विश्वास बन रहा है, कुछ गलतियाँ भी होंगी तुम प्यार याद रखना,
हर इक जन्म में हूँ तेरा यह विश्वास रखना,
सोच रहा हूँ यह मैं आज बैठे-बैठे _ _ _