लेखक की कलम से
समेट लेना चाहती हूं …
समेट लेना चाहती हूं —–
तुम्हारी बातों को
भावों को …
नजरों के इशारों को
मुस्कराहटों को …
धडकते दिल के शोर को
सांसो को…
होठों के इशारों को
उसकी नमी को …
शर्ट के बटन सा
छूने की बैचैनी को …
पूरी ताकत से लिपटकर
गलबहियों को …
हां मैं ….
समेट लेना चाहती हूं
तुम्हारे सम्पूर्ण अस्तित्व को ।।
©रजनी चतुर्वेदी, बीना मध्य प्रदेश