लेखक की कलम से
मां … मुझे मनाना नहीं आता …
धूप दीप जलाना नहीं आता
मन में तेरा ध्यान धरूं बस मां
आंखें बिछाई मां तेरे स्वागत में।
मां तुम जानो तुम्हारा काम अब
रोम-रोम करे तेरा गुनगान सब
तुम भक्तजन पर कृपा करती हो
नादान भक्त बैठे मां तेरे स्वागत में।
दे दो मां आशीष अपना जीभर
कर के बेड़ा पार हमें दो ऐसा वर
लोभ-मोह, द्वेष से रहें दूर सदा
शीश झुकाए बैठे मां तेरे स्वागत में।
तुम मां हो सब जानो ह्रदय की वेदना
रहें भक्ति में रमें जगाओ ऐसी चेतना
घर मंदिर बन जाए मां करो उपकार
बैठे हम मां कब से …तेरे स्वागत में।
©कामनी गुप्ता, जम्मू