लेखक की कलम से
मातृशक्ति को नमन …
वो शब्द नहीं हैं मेरे शब्दकोश में माँ
जिसमें तेरी महिमा का सार हो
तेरे लिए मैं क्या रचना लिखुं ऐ रचियता मेरी
तुम तो स्वयं ही सृष्टि का आधार हो ….
हार परिस्थितियों से भी तू कब मानती है
क्या कहुँ मैं तेरे लिए तू बिन कहे ही सब जानती है
दर्द सहकर भी बस खामोश ही रहती है
पीड़ा अपनी तू कहाँ किसी से कहती है
बातें हमारी तू बिन कहे ही तो जान लेती है
हर दर्द को मौन हो, बस किस्मत ही मान लेती है
तू सृष्टि, तू रचयिता, तू ही भगवान है
हर दिन तेरे लिए, तू सर्वस्व है, तू महान है
©अनुपम अहलावत, सेक्टर-48 नोएडा