भूख का बाजार …
हर सड़क के मोड़ पर
है खड़ी भूखी नजर
कुछ को रोटी चाहिए
तो कुछ को जिस्मानी नज़र
हर तरफ है दिखता
भूख का बाज़ार है
हर कदम पर बिलबिलाते
दर्द के अंबार हैं
जान पर खेलकर
है कोई सिक्का लूटता
चोरी छुपे है भर रहा
कोई दौलत भंडार है
भागते हैं बेतहाशा
कुछ खबर रखते नहीं
है कहां जाना कहां तक
हवस है कि मिटती नहीं
देखते विस्मय से हैं
आंखों में हैं संशय भरे
सामने है जो खड़ा
भूखा है या कोई चोर है
है कपट छल से भरा
हर आदमी है दोगला
चेहरे पर चेहरा चढ़ा
मीठे ज़हर से घट भरा
छतरी लिए बैठा मदारी
अचरज में है डूबा हुआ
खेल जो उसने रचा
उसके बनाए पुतलों ने
स्वार्थ से बाजी पलट
कैसे अपने हाथों लिया।
©मधुश्री, मुंबई, महाराष्ट्र
परिचय : परिवार में कलात्मक वातावरण, संगीत में रुचि, कॉलेज अध्ययन के दौरान ही कविता व गद्य लेखन में रुचि, संगीत की शिक्षा, पद्मश्री हफीज अहमद खान से दिल्ली आकाशवाणी से कविताओं व गजलों का प्रसारण, विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित.