लेखक की कलम से
यह कैसा वैशाख …
जिंदगी की बैसाखियों पर ,
चलकर …………..यह आज ,
कैसा ……….वैशाख आया ।
न आज भांगड़े हैं ।
न मेले सजे हैं ।
फसल कटने-काटने का ,
किसे ख्याल आया ।।
ज़िंदगी की बैसाखियों पर ,
चलकर आज ,
कितना मजबूर वैशाख आया ।
गेहूं की फसल का ,
घर के ,
आंगन में आज न ढेर आया ।
वह मेलों की रौनक को ,
आज मैंने घरों में बंद पाया ।
दिहाड़ी-दार अपना दर्द ,
ढोल की तान पर ना भूल पाया ।
जिंदगी की बैसाखियों पर ,
चलकर यह कैसा वैशाख आया ।
वह हल्की गर्म हवाओं के साथ ,
न तेरी धानी चुनर का ,
पैगाम आया ।
यह कैसा ,
उदास, ऊबा हुआ वैशाख आया ।
©प्रीति शर्मा, सोलन हिमाचल प्रदेश