लेखक की कलम से
तुम कब मिलने आओगे ….
मेरी आंखों में खुशियों के,
अमृत कब बरसाओगे
तुम कब मिलने आओगे।
इंतज़ार मुझको है प्रति क्षण,
सतत निहारूँ गलियों को,
मेरे मन का उपवन उजड़ा,
देखो मुरझाई कलियों को
गीत नहीं गाते अब भंवरे ,
कितने दिन और लगाओगे,
तुम कब……..
प्रियतम तेरी याद में जीते ,
सदियां, वर्ष, दिन पे दिन बीते,
मेंहदी रची भाग्य न बदला
जोड़े हाथ रह गये रीते,
आखिर कितना तड़पाओगे,
तुम कब मिलने,,,,,,
हर धड़कन तेरी आहट जोहे,
सांसों में तेरे नाम की धुन है,
रोम-रोम व्याकुल है तुझ बिन,
तन – मन का रूठा फागुन है,
कब अंग को रंग लगाओगे,
तुम कब मिलने……
अविरल धारा नित आँखों से
यूँ छल- छल कर बहती है,
चैन कहाँ है बिना तुम्हारे,
मेरी आहें ये कहती हैं।
यूँ झूठ- मूठ बहलाओगे,
कब तुम मिलने,,,,,,
©क्षमा द्विवेदी, प्रयागराज